'खबरों के सौदागर' में यह प्रश्न उठाया गया था कि दि टाइम्स आफ इण्डिया, लखनऊ द्वारा पैसे के बदले किन लोगों का जीवन चरित छाप रहा है। कल लखनऊ पुलिस ने एक और 'माननीय' एमएलसी एसपी सिंह को हत्या के आरोप मे गिरफ्तार कर के शिक्षा और राजनीति के अपराधीकरण की एक और कहानी का पर्दाफाश कर दिया है। एसपी सिंह को गत 21 सितम्बर को लखनऊ पब्लिक स्कूल के प्रबंधक चंद्र प्रकाश सिंह की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। यह वही महाशय हैं जिनकी जीवनी दि टाइम्स आफ इण्डिया, लखनऊ द्वारा विजन पुस्तिका में चार पृष्ठों में प्रकाशित की गयी है। राजनीति का अपराधीकरण कोई नयी बात नहीं है और आम जनता से कुछ छिपा भी नहीं है। सवाल तो यह है कि मीडिया ऐसे लोगों को महिमामंडित ही क्यों करता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि एसपी सिंह के गिरफ्तार हो जाने के बाद दि टाइम्स आफ इण्डिया द्वारा किसी प्रकार का कोई खेद प्रकाश भी नहीं छापा गया। यह पूरा प्रकरण यही दर्शाता है कि मीडिया किस तरह पैसे कमाने के चक्कर में अपने सिध्दान्तों को भूल चुका है और बेशर्मी से अपराधियों की काली कमाई में अपना हिस्सा वसूल रहा है।
सितारे तोड़ो या घर बसाओ, कलम उठाओ या सर झुकाओ
तुम्हारी आंखों की रोशनी तक है खेल सारा
ये खेल होगा नहीं दोबारा, ये खेल होगा नहीं दोबारा
सितारे तोड़ो या घर बसाओ, कलम उठाओ या सर झुकाओ
तुम्हारी आंखों की रोशनी तक है खेल सारा
ये खेल होगा नहीं दोबारा, ये खेल होगा नहीं दोबारा
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