बुधवार, अप्रैल 04, 2007

साईकिल वालों की औकात



लखनऊ के आम लोगों की बस्‍तियों में सड़क, बिजली और पानी जैसी मूल सुविधाओं को देने में विफल सरकार द्ववारा आजकल मुख्‍यमंत्री निवास से लेकर गोमतीनगर होते हुए पालीटेक्निक तक विश्‍व स्‍तर (?) की अति चौड़ी सड़क 'लोहिया पथ' का युध्‍दगति से निर्माण किया जा रहा है। इस महत्‍वपूर्ण सड़क पर सरकार के बड़े -बड़े कार्यालय, दैत्‍याकार शापिंग माल व मल्‍टीप्‍लेक्‍स और मुलायम सिंह की महत्‍वाकांक्षी लोहिया पार्क स्थित हैं। दोतों तरफ चार चार पंक्तियों वाली सड़क के दोनों किनारों पर साइकिल सवारों के लिए एक अलग गलियारा बनाया जा रहा है। गलियारे के दोनों ओर लगभग 7 फुट ऊंचे लोहे के जाल भी लगाए जा रहे हैं। भविष्‍य में इन्‍हीं जाल लगे गलियारों के अन्‍दर साईकिल सवारों को चलना होगा। दलील यह है कि ऐसा साईकिल सवारों की सुरक्षा के लिए किया जा रहा है ताकि
वह तेज़ रफतार वाहनों की चपेट में न आ जाएं। असलियत क्‍या है इसका अंदाजा लगाना जरा भी मुश्किल नहीं है। यह सड़क नैनीताल की माल रोड की तरह होगी जहां ब्रिटिश शासन में ब्‍लडी इंडियन्‍स का चलना वर्जित था। लोहिया पथ पर बड़े लोगों की लम्‍बी लम्‍बी कारों के साथ कंधे लटकाए,निस्‍तेज आंखों वाले साईकिल सवार छोटे लोग चलें – यह सांमती विचारधारा के दम्‍भी लोग कैसे गवारा कर सकते हैं ? इस गलियारे में अगर एक बार कोई घुस जाए तो फिर वह बीच में कहीं बाहर नहीं निकल सकता। गलियारे के बीच में अगर कोई भंयकर हादसा हो जाए तो साईकिल सवार का उससे बच निकलना असंभव है। और तो और इस रास्‍ते के बीच में पड़ने वाले रेलवे क्रासिंग के ऊपर भी एक ऊंचा सा पुल भी बनाया जा रहा है,जिस पर चढ़कर साईकिल सवारों को चलने के लिए अच्‍छी खासी मेहनत करनी होगी। सबसे अचम्‍भे की बात यह है कि यह सब मुलायम सिंह के शासन में हो रहा है,
जिनका चुनाव चिन्‍ह साईकिल ही है। और यह वही साईकिल सवार हैं जिनके बल-बूते पर मुलायम आज तक जीतते आए हैं।
वर्ग भेद की इस घिनौनी कुचेष्‍टा करने वाले सामंती विचाराधारा से पोषित व्‍यक्तियों के गुट में मुलायम सिंह जैसे समाजवादी का होना अखरता है।

ये जो फफोले तलुओं मे दीख रहे हैं ये मुझको उकसाते हैं । पिण्डलियों की उभरी हुई नसें मुझ पर व्यंग्य करती हैं ।मुँह पर पड़ी हुई यौवन की झुर्रियाँ क़सम देती हैं ।कुछ हो अब, तय है – मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है,पत्थरों के सीने में प्रतिध्वनि जगाते हुए परिचित उन राहों में एक बार विजय-गीत गाते हुए जाना है – जिनमें मैं हार चुका हूँ ।
- दुष्यन्त कुमार

शनिवार, दिसंबर 30, 2006

नव वर्ष आपके लिए सुखद,स्‍वस्‍थ और समृध्‍द हो।


नव वर्ष में आपके मार्ग प्रशस्‍त हों, उस पर पुष्‍प हों, नये कोमल दूब हों, आपके उद्यम व आपके प्रयास सफल हों, सुखदायी हों और आपके जीवन-सरोवर में मन को प्रफुल्लि त करने वाले कमल खिले हों।

शुक्रवार, दिसंबर 29, 2006

खबरों के सौदागर


शातिर ठगों के गिरोहों द्वारा बदलती अर्थव्‍यवस्‍था से उपजे नव धनाढ्यों को किसी फर्जी अंतराष्‍ट्रीय संस्‍था का अर्थहीन अवार्ड दिलाने का धंधा काफी दिनों से चल रहा है। इन लोगों में चाय, बिस्‍कुट,पान-मसाला,हलवाई,यौन रोगों के झोला छाप डाक्‍टर, बिल्‍डर्स,निजी स्‍कूलों के मालिकान आदि शामिल हैं, जो कभी न कभी लम्‍बी रकम के बदले, विदेशों में किसी फिरंगी के हाथों ऐसा अवार्ड प्राप्‍त कर चुके हैं। और मजे की बात तो यह है कि सरासर बेवकूफ बनने के बाद भी यह लोग विज्ञापनों के माध्‍यम से इसका बेशर्मी से डट कर खुले आम प्रचार भी करते हैं। कुछ-कुछ ऐसा खबरों की दुनियां में भी हो रहा है। एक आम पाठक मीडिया में छपी खबरों को सही मानता है। लेकिन खबरों और खबरों छपे विज्ञापनों में भेद कर पाना उसके लिए बेहद मुश्किल है। पत्रकारिता के मानदंडों, मूल्‍यों और नैतिकता को ताक पर रखते हुए अब इसमें हर कोई हाथ धोने में लगा हुआ है। 22 अगस्‍त,2005 के अंक में इण्डिया टुडे (हिन्‍दी संस्‍करण) द्वारा इंम्‍पैक्‍ट फीचर के माध्‍यम से ऐसे कई लोगों का जीवन चरित छापा जा चुका है।

अभी तक इन विज्ञापनों को खबरों की तरह छापा जा रहा था और अब एक नयी पहल इनको पुस्‍तक के रूप में छाप कर की जाने ल्रगी है। सबसे पहले सहारा समूह के प्रमुख की जीवनी छापने वाले दि टाईम्‍स आफ इण्डिया, लखनऊ ने एक बार फिर 'विजन' नाम से एक पुस्‍तक प्रकाशित की है जिसमें 31 लोगों के जीवन चरित छापे गए हैं,जिन्‍हें 'लीजेन्‍ड आफ उत्‍तर प्रदेश' के वर्गीकरण से सुशोभित किया गया है। इन लोगों के चयन का आधार क्‍या है, पुस्‍तक में इसका कोई भी उल्‍लेख नहीं है। आम पाठक की नजरों में तो केवल यह सब लोग ही उत्‍तर प्रदेश के विशिष्‍ट जन हैं क्‍योंकि एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने पुस्‍तक के माध्‍यम से इसे प्रमाणित किया है। कोई बड़ी बात नहीं कि कुछ दिनों के बाद बाजार में ऐसी पुस्‍तकों की बाढ़ आ जाए क्‍योंकि अन्‍य समाचार पत्रों में इसकी तैयारियां शुरू हो गयी होंगी। बिना किसी नियम और आधार के प्रकाशित होने ऐसी पुस्‍तकों में कोई भी सिर्फ पैसा खर्च कर अपने बारे में कुछ भी छपवा सकेगा। तब भ्रष्‍टाचारियों और अपराधियों को महिमामंडित करती ऐसी पुस्‍तकों से पाठकों को क्‍या मिलेगा, इसका तो अंदाज लगाया जाना आसान है पर बैंकों की तरफ दौड़ते समाचार पत्र कितनी कमाई कर रहे होंगे,यह पता लगाना मुश्किल होगा। यह एक भयावह स्थिति है।

खबरों को पर्दे के पीछे बेचने के बाद अब खुले आम इसे बेचा जाना मीडिया की विश्‍वसनीयता पर एक सवालिया निशान लगा रहा है। पत्रकारिता की अस्मिता से खेलने वाले मीडिया के पुरोधाओं – बन्‍द करों इस खेल को।

फना के बाद परवाने की मइयत नहीं उठती
गुनहगारे मुहब्‍बत का यही अंजाम होता है।

गुरुवार, दिसंबर 28, 2006

'खबरों के सौदागर' का असली चेहरा

'खबरों के सौदागर' में यह प्रश्‍न उठाया गया था कि दि टाइम्‍स आफ इण्डिया, लखनऊ द्वारा पैसे के बदले किन लोगों का जीवन चरित छाप रहा है। कल लखनऊ पुलिस ने एक और 'माननीय' एमएलसी एसपी सिंह को हत्या के आरोप मे गिरफ्तार कर के शिक्षा और राजनीति के अपराधीकरण की एक और कहानी का पर्दाफाश कर दिया है। एसपी सिंह को गत 21 सितम्‍बर को लखनऊ पब्लिक स्कूल के प्रबंधक चंद्र प्रकाश सिंह की हत्‍या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। यह वही महाशय हैं जिनकी जीवनी दि टाइम्‍स आफ इण्डिया, लखनऊ द्वारा विजन पुस्तिका में चार पृष्‍ठों में प्रकाशित की गयी है। राजनीति का अपराधीकरण कोई नयी बात नहीं है और आम जनता से कुछ छिपा भी नहीं है। सवाल तो यह है कि मीडिया ऐसे लोगों को महिमामंडित ही क्‍यों करता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि एसपी सिंह के गिरफ्तार हो जाने के बाद दि टाइम्‍स आफ इण्डिया द्वारा किसी प्रकार का कोई खेद प्रकाश भी नहीं छापा गया। यह पूरा प्रकरण यही दर्शाता है कि मीडिया किस तरह पैसे कमाने के चक्‍कर में अपने सिध्‍दान्‍तों को भूल चुका है और बेशर्मी से अपराधियों की काली कमाई में अपना हिस्‍सा वसूल रहा है।

सितारे तोड़ो या घर बसाओ, कलम उठाओ या सर झुकाओ
तुम्‍हारी आंखों की रोशनी तक है खेल सारा
ये खेल होगा नहीं दोबारा, ये खेल होगा नहीं दोबारा

मेरी बातों में मसीहाई है, लोग कहते हैं बीमार हूं मैं

कल डाक्‍टर ने बताया कि अब मैं पूर्ण रूप से स्‍वस्‍थ हैं और अब अपना कार्य सुचारू रूप से कर सकता हूं। इस ब्‍लाग को प्रारम्‍भ करने से पूर्व मैंने सोचा था कि इसमें नियमित रूप से लिखा करूंगा, पर बीमारी ने ऐसा घेरा कि सब कुछ सोचा धरा का धरा रह गया। साथ ही कुछ ऐसा भी हुआ जिसका मुझे अनुमान भी न था। मेरे अनजान ब्‍लाग को लगभग 300 से ज्‍यादा लोग पढ़ेंगे यह मैंने कभी नहीं सोचा था। इसके अलावा 153 सर्वथा अपरिचित सज्‍जनों से शीघ्र स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के संदेश भी ई-मेल द्वारा प्राप्‍त हुए, इतने लोग तो व्‍यक्तिगत रूप से भी मेरा हालचाल लेने नहीं आए। आप सभी बन्‍धुओं के प्रति मैं दिल से आभार प्रकट करता हूं। एक बात और जिसका मैं विशेष रूप से उल्‍लेख करना चाहूंगा - अपने ब्‍लाग के प्रथम अतिथि श्री अफलातून जी को भूल जाना मेरे लिए सम्‍भव न हो पाएगा और जब कभी प्रभु की इच्‍छा होगी मैं उनसे व्‍यक्तिगत रूप से अवश्‍य मिलूंगा।

इस ब्‍लाग पर पधारे प्रत्‍येक अतिथि को एक बार पुन: धन्‍यवाद और साथ ही आशा करता हूं कि आप सबसे ऐसा ही स्‍नेह मुझे हमेशा प्राप्‍त होता रहेगा।

मेरी बातों में मसीहाई है, लोग कहते हैं बीमार हूं मैं
एक लपकता हुआ शोला हूं मैं, एक चलती हुयी तलवार हूं मैं

शुक्रवार, दिसंबर 08, 2006

विनती है मेरे साथ रहें, जल्‍दी ही वापस आऊंगा।

अस्‍वस्‍थ हूं। अवसादों से घिरा और चेतना शून्‍य हूं। रचनात्‍मक रस का प्रवाह भी अवरूद्ध है। विनती है मेरे साथ रहें, जल्‍दी ही वापस आऊंगा।

मंगलवार, अक्टूबर 31, 2006

शास्‍वत का अर्थ है सदा रहने वाला, नित्‍य।


शास्‍वत का अर्थ है सदा रहने वाला, नित्‍य । जो नित्‍य है वह सबके लिए है। सच का मूल स्रोत परमात्‍मा है और यही शास्‍वत सत्‍य है । जैसे एक वृक्ष, जिसका सम्‍बन्‍ध मूल से कट गया हो, शीघ्र ही सूखने लगता है, इसी तरह हमारा समाज सच के बिना विच्छिन्‍न हो सूख रहा है । इस ब्‍लाग में सच्‍ची खबरों को स्‍थान मिले यही हमारा घ्‍येय है ।

ऐसी खबरें जिन्‍हें आप समझते हैं कि झूठ के आवरण में दबा दिया गया है, आप उन्‍हें हमें बताएं, हम उसे प्रकाशित करेंगे । आपके सहयोग की आंकाक्षा में यह ब्‍लाग आपको ही समर्पित है ।